एक तरफ मजबूर लोग जिनसे अपने बच्चों की भूख देखी नहीं जा रही, दूसरी तरफ सरकारी मुलाजिम जिन्हें दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन कराना है। रविवार को कुछ ऐसा ही जद्दोजहद वाला नजारा टाउनहाल के पास दिखा। फल और खीरा बेचने वाले यहां अपना ठेला लिए खड़े थे। भीड़ जुटने लगी तो किसी ने कंट्रोल रूम में सूचना दे दी।
पुलिस वाले मौके पर पहुंचे, ठेले वाले से कुछ पूछते, इससे पहले ही बोला पड़ा, साहब घर में छोटे बच्चे हैं, खाने तक के रुपये नहीं बचे हैं, बेच लेने दीजिए। यह सुनकर पुलिस वाले भी पसीज गए। मगर आदेश के पालन की मजबूरी थी। बोले, बेचो मगर फेरी करके, एक जगह खड़े मत रहो। भीड़ न लगने पाए। यह एक बानगी मात्र है।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने रोजमर्रा कमाकर जीवन यापन करने वालों की कमर तोड़ दी है। रुपये मिल जाएं और परिवार का खर्चा चले इसकी चुनौती बड़ी होती जा रही है। इलाहीबाग में किराए पर रहने वाले अब्दुल बताते हैं कि कुछ दिन सब्जी बेची मगर मंडी में रात में ही जाना पड़ता था। घरवाले डर गए कि भीड़ में कोरोना हो जाएगा। फिर फल बेचने का फैसला किया।
उधार रुपये लेकर फल लाया, मगर वे बिक नहीं पाए और नुकसान हो गया। अब खीरा बेच रहें हैं। कुछ ऐसा ही दर्द साकेत नगर में रहने वाले रमेश कुमार का भी है। वह पहले गुटखा बेचते थे। अब सब्जी बेचकर जीवन यापन कर रहे हैं। ठेले वालों का कहना है कि गनीमत है कि पुलिस के लोग भी मजबूरी समझ रहे हैं। वे मारते नहीं बल्कि सिर्फ जगह बदलने को कह कर चले जाते हैं।